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Thursday, August 30, 2007

हैं पढने वाले बहुत कद्रदान आपके

सब दबे पाँव निकल गए आज
खाली है पोस्ट...
बोले हमारे मित्र यतीश!

मूड में हो क्या मजाक के
मान्यवर.
या यह किसी तरह का है
निराशावाद.

हम से पहले ही मिल गईं
आपको
पांच टिप्पणियां,
एवं ले लीजिये यह छटवां,
जो लिखा है हम ने
काफी लम्बा,
समझकर आपको अपना
कनिष्ट भ्राता.

सुन लें साथ में सुझाव
विपुल का,
और हटा दें हर तरह का
मॉडरेशन, जांच परख.
चाहता है हर टिप्पणीकार देखना,
आपकी कविता से पहले अपनी
टिप्पणी.
करेंगे वंचित उनको इस
सुख से,
तो आप भी रह जाओगे
दूर,
अच्छी टिप्पणियों से.

सही कहते हैं परमजीत,
कि देखते तो हैं बहुत,
लेकिन टिप्पणी के लिये
मिल पाता कहां है
हर दिन समय.
हम भी तो देख रहे हैं
चिट्ठे को आपके सुबह से,
लेकिन मिल पाया समय
सिर्फ बारह घंटे बाद.

लिखते जायें
टिप्पणी मिले या न मिले,  क्योंकि
हैं पढने वाले बहुत कद्रदान आपकी
कलम के !

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Tuesday, August 28, 2007

हीरक हैं वह व्यक्ति

शब्दों में है शक्ति अपार,
स्वर्णिम हैं जो बदले नहीं
घिसने से,
न उतरा है जिनका कलेवर
उपयोग से.

लेकिन हीरक हैं वे मानव
जो प्रयोग करते हैं
शब्दों का,
जल के समान बांध के,
शक्ति पैदा करने के लिये,
एवं बांटने
जनकल्याण के लिये.

शक्ति दो हे प्रभु,
कि समझे ताकत शब्दों की,
कि बदल सकें समाज को
उनके द्वारा.
लड सकें अन्याय, विषमता,
एवं गुलामी के विरूद्ध,
सहायता से
स्वर्णिम शब्दों के !!

[स्वर्णिम है वह शब्द के आस्वादन में लिखा गया]

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Monday, August 27, 2007

जिम्मेदारी है बहुत अधिक मानव की

ज्ञानेंद्रियां हैं पांच, और
कर्मेंद्रियां भी हैं पांच मानव के पास.
नहीं किसी भी और सृष्टि के पास
इतनी इंद्रियां चराचर जगत में.

याद दिलाता है यह कि
जिम्मेदारी है बहुत अधिक मानव की
पाने इन्द्रियों पर विजय की,
एवं  उनका करने को उपयोग
सार्थक एक जन्म को पाने को.

आह्वान है मेरा कि
नजर डाले एक बार अपने
जीवन पर
कि किया है क्या काबू
इंद्रियों को इस तरह कि,
हो जाये यह जीवन
सचमुच में सार्थक !

[आदमी उमर भर अनजान रहता है का पूरक]

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Sunday, August 26, 2007

क्या हम कभी नहीं सुधरेंगे ?

क्यों नही सुधरेंगे.
जरूर होगा परिवर्तन,
यदि करेंगे हम में से हर कोई
योगदान अपना अपना.

याद दिला दूं पहले कि
था मानव काफी जंगली
सिर्फ कुछ हजार साल पहले.
न सुना था किसी ने
नाम जनतंत्र का, न्याय व्यवस्था का,
या कानूनी सुरक्षा का.
न था तब संविधान
एकाधिपति की इच्छा के अलावा
और कुछ.

हम क्या थे,
क्या हो गये,
और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें सब मिल कर
यह सब कुछ
बोले थे कवि.

यही मैं दिलाना चाहता हूं
याद आप सब को आज.
परिवर्तन हुआ है बहुत
कुछ.
कोशिश करे हम मे से हरेक,
तो बहुत परिवर्तन होगा
अभी और.

आओ विचारें आज यह
हम सब मिलकर.
आओ कुछ करें ऐसा आज से,
कि हो देश कल एक
सुन्दर बगिया !

[क्या हम कभी नहीं सुधरेंगे ?  का प्रत्युत्तर]

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