सब दबे पाँव निकल गए आज
खाली है पोस्ट...
बोले हमारे मित्र यतीश!
मूड में हो क्या मजाक के
मान्यवर.
या यह किसी तरह का है
निराशावाद.
हम से पहले ही मिल गईं
आपको
पांच टिप्पणियां,
एवं ले लीजिये यह छटवां,
जो लिखा है हम ने
काफी लम्बा,
समझकर आपको अपना
कनिष्ट भ्राता.
सुन लें साथ में सुझाव
विपुल का,
और हटा दें हर तरह का
मॉडरेशन, जांच परख.
चाहता है हर टिप्पणीकार देखना,
आपकी कविता से पहले अपनी
टिप्पणी.
करेंगे वंचित उनको इस
सुख से,
तो आप भी रह जाओगे
दूर,
अच्छी टिप्पणियों से.
सही कहते हैं परमजीत,
कि देखते तो हैं बहुत,
लेकिन टिप्पणी के लिये
मिल पाता कहां है
हर दिन समय.
हम भी तो देख रहे हैं
चिट्ठे को आपके सुबह से,
लेकिन मिल पाया समय
सिर्फ बारह घंटे बाद.
लिखते जायें
टिप्पणी मिले या न मिले, क्योंकि
हैं पढने वाले बहुत कद्रदान आपकी
कलम के !
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