ज्ञानेंद्रियां हैं पांच, और
कर्मेंद्रियां भी हैं पांच मानव के पास.
नहीं किसी भी और सृष्टि के पास
इतनी इंद्रियां चराचर जगत में.
याद दिलाता है यह कि
जिम्मेदारी है बहुत अधिक मानव की
पाने इन्द्रियों पर विजय की,
एवं उनका करने को उपयोग
सार्थक एक जन्म को पाने को.
आह्वान है मेरा कि
नजर डाले एक बार अपने
जीवन पर
कि किया है क्या काबू
इंद्रियों को इस तरह कि,
हो जाये यह जीवन
सचमुच में सार्थक !
[आदमी उमर भर अनजान रहता है का पूरक]
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