हिन्दी के चरणदास हैं,
श्रीमान समाजमित्र.
कॉन्वेन्ट पढी बीबी को है घिन,
हर चीज, हिन्दुस्तानी से.
नयनतारा देवी है नाम,
पर हरेक को बताती है नाम,
नयन टारा डेवी.
कुत्तर, नौकर, समाजमित्र को वे,
आज्ञा दे सिर्फ अंग्रेजी में.
मेम साहब को घर छोड,
श्रीमान समाजमित्र करते थे हिन्दी की,
दिल से सेवा.
आज था हिन्दी सेवा समाज में उनका,
अध्यक्षीय भाषण!
हतभाग्य! हो गया गजब!!
उनके मूह से आज फूटें सिर्फ
शब्द अंग्रेजी के, चाहे कितनी कोशिश कर लें.
पांच मिनिट का भाषण
वे रोक पाये सिर्फ पच्चीस मिनिट में.
जनता भी हैरान, समाजमित्र भी हैरान.
अंत में दांतों का सेट बाहर निकाल,
बोले चरणदास,
दयनीय सुर में:
“क्षमा करना दोस्तों,
गलती से आज
मेम साहब के दांतों का सैट
लगा कर आ गया था” !!
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1 comment:
हा हा हा....मज़ेदार कविता....
"क्या करें उनके पास दाँतो का सैट एक ही है"
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