Tuesday, August 28, 2007

शब्दों में है ताकत अपार

शब्दों में है ताकत अपार.
मिटा सकते हैं क्षण भर में,
जिन्दगी इक अनमोल;
फैला सकते हैं महज इक दिन में
विनाश घनघोर !

लेकिन शब्दों में नहीं ताकत का
मर्म,
जैसे महज बांध के पानी में,
या ठंडे डाईनामईट में नहीं है
विस्फोट की ताकत.

कितने ही बांध पडे है
पुराने,
किसी के न काम के.
लाखों टन पडे हैं
डाईनामाईट गोदामों में,
बिना विस्फोट किये.

मानव मस्तिषक है मर्म
शक्ति का,
चाहे बांध हो या हो डाईनामईट.
शब्दों की शक्ति भी
करती है निर्भर उसी मानव के
मन पर.

रोते बच्चे के लिये मां के मूंह से
फूटते शब्द,
दुखी दोस्त को सांत्वना देते शब्द,
रणक्षेत्र में सैनिको हिम्मत देते शब्द,
सभी तो शब्दकोश में है, लेकिन
नहीं है कोश शक्ति का केन्द्र.

दे दो लेकिन वही शब्द एक मानव को,
उसके मूंह मे, कलम में,
बन जाता है वह सांत्वना का स्रोत,
वीर रस का स्रोत, या
अपराधियों की प्रेरणा.
उसके मूंह में बन जात है वह
विनाश का साधन.

शब्द देता है शब्द को शक्ति,
लेकिन उसको दिशा देते हैं
मानव.
दिशा दें ऐसी कि उन से हो निर्माण,
न कि टूट पडे  काल.

[नहीं बाटते अब दर्द शब्द , शब्दो का का प्रत्युत्तर]

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1 comment:

Anonymous said...

jitendra ji,

wonder how you manage to keep on finding new hindi blogs, with such ease and speed, looks like you have a third eye or something... :-)

but shastri sir is of course not new to hindi blogging - just this blog is new... his blog sarathi is already promoting hindi bloggers for quite some time now.. and iicet.com is also to promote hindi...

but your efforts too are quite tireless it seems, you keep on continuing with such good efficiency... good luck!

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Shastri Sir,

On your last poem on the "shabd" theme,
मत बनाओ हलाहल
I wrote that it brings into focus the importance of words but with this one, you have defocussed them again, to bring them into another context..

Both the poems are well written, but this one, I had to read slowly, to make sure, I understand what you are saying! :-)