Wednesday, December 19, 2007

पतिव्रता

वे बोली,
कोई न होगी पतिव्रता
मुझसे अधिक.

तभी तो मैं
पति के गृहस्थी के
कामों में,
कभी भी नहीं करती
नुक्ताचीनी.

कहां आता है उनको
ढंग से खाना पकाना या,
बच्चे खिलाना.
कब उन्होंने बनाया है
स्वादिष्ट खाना,
या ठीक से बुहारा घर,
या साफ पोंछा लगाया फर्श पे.
कब मुझे हुई है तृप्ति
उनकी तनख्वाह से.

लेकिन कब किसी से
की है शिकायत
मेरी इन कठिनाईयों
के बारे में!

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1 comment:

राजीव तनेजा said...

बहुत खूब...

लीक से हटकर लिखी गई अच्छी कविता