वे बोले,
रेलगाडी के पहिये
मेरी प्रेरणा के
स्रोत हैं.
देखिये न,
वे सदा आगे को
बढते रहते हैं,
फिर भी अपनी धुरी से
अलग न हटते
सजा
“हुजूर”
चोर बोला,
मुझे सरकारी वकील नहीं
आपका निर्णय चाहिए.
अपना कानूनी हक नहीं
बल्कि सजा चाहिये.
कम से कम
कुछ दिन बिना
फिकर की
रोटी चाहिये.
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1 comment:
एक प्रेरणा देती तो दूसरी सामाजिक दुर्दशा व्यक्त करती सुन्दर कविताएँ
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