Friday, August 24, 2007

मत बनाओ हलाहल

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

शब्द में है ताकत
बहुत बडी.

समय पर बोले
सदवचन,
बना सकते हैं
कायर को वीर,
डरपोक को हिम्मती,
कमजोर को मजबूत.

कठोर वचन,
नीच चिंतन को आगे
बढाने वाले वचन,
मर्यादा को तोडने वाले वचन,
मिटा सकते हैं
नींव को, परिवार को,
समाज को.

तभी तो कहते थे
पुरखे कि,
वाणी में है अमृत;
कहीं बन न जाये,
लापरवाही के कारण वह,
हलाहल !

[शब्द ही ना समझे पर शब्दो को  का उत्तर]

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: काविता, काव्य-विधा, काव्य-अवलोकन, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi-poem, hindi-poem-analysis, hind-context,

4 comments:

Anonymous said...

thnakyou for linking my blog

Anonymous said...

This poem is extremely well written - easy to understand, packs in a LOT of meaning and definitely brings back attention to the importance of words, in a very nice and focussed way.

I may be wrong, but I dont think its a "reply" to Rachna Ji's poem because even though many lines of her poem are in a question format, I dont see any "question" in her poem BUT at the same time I regard this poem as a GREAT "RESPONSE" to that poem!!

Good poetry at the both the places - what more can we ask for!

Yatish Jain said...

शब्द तो शब्द है
इसमे अर्थ तो हम ही भरते है,
इनका प्रयोग भी हमारे ही हाथो है,
अगर ये करते है कुछ गड़बड़
तो ज़िम्मेदार भी हम है.
http://qatraqatra.blogspot.com/2007/08/blog-post_26.html

अविनाश वाचस्पति said...

क्‍या ऐसा हो सकता है
हलाहल बन सकता है हल।