जोड सकती हिन्दुस्तान को
एक सूत्र में
सिर्फ हिन्दी,
न कि फिरंगी की
भाषा.
दुश्मनी की नहीं
है जरूरत,
किसी भी भाषा से,
लेकिन हो जाये
सौत हिन्दी की एक
विदेशी भाषा तो
जरूरी है मर्ज के
तुरंत इलाज की.
बस गई है अंगेजी के
प्रति आराधना
हमारे मनों में ऐसी,
कि झाडना होगा इसे
जब तक कि हिन्दी
न पा ले सही अपना स्थान.
छोटा सा एक काम जो
कर सकते है हम आप,
है वह हस्ताक्षर करना
हिन्दी में.
हस्ताक्षर हरेक की
है अपनी पहचान,
इसे रखें हिन्दी में
तो खुलेंगे बहुत सी
आंखें.
नहीं बदलेगा अधिक कुछ
एक हिन्दी हस्ताक्षर से,
पर जब मिलेंगी बहुत सारी
बूंदे हिन्दी प्रेमियों की,
तो भरेगा जरूर घट
कभी न कभी.
[सिर्फ हिन्दी में हस्ताक्षर करें ! का पूरक]
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