अंग्रेजी का ऐसा था प्रेम
सिरीमती मोहमाया को,
कंठ लंगोट बिना समझती
नहिं किसी को पुरुस.
काटे छुरी के बिना
खाये जो, तो समझे
उसे जनावर.
दिया बच्चों को हर तरह की
इंगलिस तालीम.
समझाया कुपूत को
कि मूरख हैं जो करते देसप्रेम.
समझाया पुत्री को कि मर्यादा है
कमजोरों की निसानी.
बेटा बना कलकटर,
बिटिया बनी कंपूटर पिरोगामर.
पहुंचाया तुरंत मांजी को,
बडे अनाथालय.
बोले यही रीत है मातासिरी,
अंगरेजी देसों की.
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