Friday, November 9, 2007

तू कैसे काम करता है ?

पता नहीं तू कैसे काम करता है.
कभी तो ऐसा लगता है
कि तू पूरी तरह से
है काबू मेरे.
लेकिन कभी लगता है कि
गलत है यह धारणा मेरी.

लेकिन एक बात सत्य है.
जब भी तुम भर जाते हो
प्रेरणाओं से,
तो बहती है धारायें
तुम से कल कल
जो देती है प्यासे को तृप्ति
एवं रचनाकार को
संतुष्टि !

हे मेरे मन,
तुम समझ के बाहर हो,
लेकिन तुम न होते
तो मैं कैसे समझता
रचता कविताओं को.

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1 comment:

Anonymous said...

wonderful poem sir!

this one is really nice. simple but beautiful! really good!!