Friday, August 31, 2007

पर्दा तो सिर्फ करते हैं मनुष्य

आज मैं ने एक कविता पढी जिसकी तीन पंक्तियां है:

"शब्द सिर्फ पर्दा हैं,
शब्द नहीं है,
कुछ भी कहते,"

मेरा जवाब:

अभी शब्दों की दुनियां
मे करो विचरण
कुछ समय.
आ जायगा समझ
कि पर्दा तो सिर्फ
करते हैं मनुष्य,
क्या लेना देना है
शब्दों को ऐसी
चीजों से !!

कार्य शब्दों का है
हटाना पर्दा हर तरह का,
तो भला क्यों ओढेंगे
वे पर्दा ?

न तो जानवर खेलते हैं
लुकाछिपी,
न खेलती है भाषा
यह खेल.
वह तो मनुष्य है जिसको
आता है मजा हर तरह का,
छिपाछिपी के खेल में.

अत: मेरे दोस्त,
यदि लग रहे हो
शब्द परदे के समान,
तो जानो यकीन कि है
कोई मानव उस
खेल के पीछे.

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7 comments:

Yatish Jain said...

"कार्य शब्दों का है
हटाना पर्दा हर तरह का,
तो भला क्यों ओढेंगे
वे पर्दा ?"
सही कहा आपने. पर जो लोग परदे मे रहने के आदी होते है वो हर चीज़ का परदा बना लेते है. नाम का, जगह का, विचारो का, राइट्स का, शब्दों का

Anonymous said...

यतीष जी,

सादर नमस्कार ।

शास्त्री सर की इस कविता का हर शब्द सही है।

मैं यह मानता हूँ, की शास्त्री सर ने इस कविता को, जिन शब्दों के "खिलाफ" में लिखा है, यह उन्हीं के पूरक हैं ।

मेरी "जवाब" देने में कोई रुची नहीं है, क्योंकी वो कविता मैने, जिस सन्दर्भ मे लिखी थी, वो उस सन्दर्भ मे बिलकुल सही थी, उसके बाद जिसे भी जो समझना हो, सो अच्छा।

केवल मेरी सोच ही सही है, ऐसे विचार मै नहीं रखता।
क्योंकी मै अब भी यही मानता हूँ , की शब्द कुछ नहीं कहते, वो सिर्फ कहने की कोशिश..
शब्दों का मतलब तो सब अपना ही निकालते हैं, और यह मुझे उचित भी लगता है, और इसी बात को मैंने कविता मे लिखा है..

पर आपके इन शब्दों से मैं सहमत नहीं, बस इसलिये यह टिप्पणी जरुर लिख रहा हूँ ..
पर इसे अन्यथा ना लिजियेगा, टिप्पणी पढ़ कर भी आप अपनी सोच पर ही बनें रहें, तो भी मुझे कोई आपत्ति नहीं है..

> पर जो लोग परदे मे रहने के
> आदी होते है वो हर चीज़ का
> परदा बना लेते है. नाम का,
> जगह का, विचारो का,
> राइट्स का, शब्दों का

कोई अकेला भी रहना पसन्द कर सकता है, जरुरी नहीं, की हर बात पढ़ने के लिये ही लिखी जाए..

मेरी राय में, अकेले रहने को, आप पर्दे मे रहना ना माने, तो ज्यादा अच्छा ।
पर्दे में छुपे हुये लोग, अक्सर "भीड़" में ज्यादा मिला करते हैं।

जिस जगह के विषय में, आप शायद कह रहें हैं, वहाँ भी मैंने स्पष्ट लिखा है - वह खुली है, जो भी आये, सबका स्वागत है - पर खिड़की या छत के रास्ते ना ही आयें, तो ज्यादा अच्छा है। जो एक दरवाज़ा है - उसे मै जहाँ खोलूँ और जिसके लिये खोलूँ , वहीं से आयें लोग, तो मुझे ज्यादा अच्छा लगता है। हाँ, पर कोई खिड़की या छत के रास्ते भी आता है, तो भी मै स्वागत के लिये तैयार हमेशा हूँ... आपके सामने कोई पास्वर्ड का फार्म तो नहीं आया होगा, महज़ इतना है, की उस जगह के लिये, मैं किसी को निमंत्रण नहीं देता हूँ , क्योंकी मै उसे उचित नहीं समझता और वह पूरी तरह से मेरी मर्जी की बात है - यह भी शायद आप मानेंगे।

पर वह जगह खुली जरुर है- कोई username/password का login box आपके सामने नहीं आयेगा।
आपका, और जो भी कोई आना चाहे, सबका स्वागत है - दिल में जगह की कोई कमी नहीं है पर वह जगह शायद सबके लायक ना हो .. सो मै किसी को भी निमंत्रण नहीं देता...

मेरे विचारों की अगर बात है - तो उन पर कोई रोक कभी थी ही नहीं।

(मैने amonymous भी लिखा है, लेकिन मैं मानता हूँ, anonymous लिखने से विचारों पर कोई रोक नहीं लगती.. और बहुत से लोग, anonymous लिख पाने की इज्ज़त में, freedom of expression, ki possibility ko batate hain... पर यह तो एक अलग मुद्दा है, और please, anonymous रहने के कारण पर ना जाइयेगा, क्योंकी विचारों के पर्दे मै रहने का, इससे कोई सम्बंध नहीं है, पर anonymous लिखना, पर्दा जरुर है, यह मै मानता हूँ, पर यह ब्लौग के मालिक की स्पष्ट इज्ज़ाज़त से ही होता है..)

विचार, राइटस, शब्द - सब पूर्णतः आज़ाद हैं - चाहे जो भी चाहे, जैसे मर्ज़ी समझे, जैसे मर्ज़ी बदले, जैसे मर्ज़ी इस्तेमाल करें ।

पाबंधी सिर्फ नाम की है, जिसका वैसे भी कोई खास मायना नहीं - हालांकी जिस जगह की आप बात कर रहें हैं - वहाँ मेरा नाम स्पष्ट है - कोई पर्दा नहीं है ..

फिर भी आप चाहें जैसे विचार रख सकते हैं - इस टिप्पणी को अन्यथा ना लिजियेगा...

आपके लिखे शब्दों के लिये तो हमेशा मेरी तारीफ़ रही ही है, और शायद आगे भी रहेगी - बस यहाँ कुछ बात सही नहीं लगी, सो कह दिया ..

पढ़ने के लिये शुक्रिया।

Yatish Jain said...

मेरे ख्याल से सबसे प्राथमिक बात यह है की ब्लॉग पर लिखने का मतलब क्या है? पहले से ही इतने मध्यम है छिपे हुए, खुले हुए, ब्लोगर ने भी ये सुविधा दी है. तो यह तो लिखने वाले की न समझी है की खुले मे लिखा है और चाहता है कोई पढे नही या किसी भी तारा की अपने मनमर्जी की उम्मीद करना, सदर मे दूकान खोलोगे तो लोग आएंगे , भाव लगायेंगे, कुच्भी बोल के जायेंगे, इसके लिए तैयार रहना होगा मेरा यह मानना है. अन्यथा आपको अपनी दुकान ऐसे मार्केट मे खोलनी चाहिए जहाँ आपके मन पसंद रूल चलते हों.
यह तो खुला मंच है

shama said...

Shashtriji,
Aapke comment ke liye bohot dhanyawad!Kshamaprarthi hu ki Roman Hindme type kar pa rahi hu.Maine aapke blog kabhee aswad liya aur bada maza aya...phir ekbar,aur baar,baar aaramse aswad lungee!Shubhkamnayen!
Shama

Preetilata【ツ】 said...
This comment has been removed by the author.
Preetilata【ツ】 said...

aapka jawab dene ka tarika bilkul bemisal or atulaniya hai.

shama said...

Shatriji,meri ek aur sadeesi kahani poori huee hai...shayad aapko ruchi mile.Kisi karanwash mai tippaniya devnagreeme nahee likh paa rahee hun...kshama chahtee hun.
Kahani kya,mai kahungi,ye madhyam wargeey gruhiniyonka rozmarrahka jeevan hota hai!!